Thursday 22 June 2023
Weekly Knowledge #1⃣7⃣1⃣
Weekly Knowledge #1⃣7⃣1⃣
Banglore Ashram
17 Sep 1998
India
DO IT TILL YOU BECOME IT !
Virtues have to be practised till they become your nature. Friendliness, compassion and meditation should continue as practices till you realise that they are your very nature.
The flaw in doing something as an act is that you look for a result. When it is done as your nature, you are not attached to the result and you continue doing it. An action that arises from your nature is neither tiring nor frustrating. For example, daily routines like brushing one's teeth or bathing are not even considered actions because they are so integrated into one's life. You do all this without doership. When Seva is made part of your nature, it happens without doership.
Question:- When do you realise that compassion, meditation and Seva are your nature?
Answer:- When you cannot be without it.
Wise men continue the practices just to set an example, even though for them, there is no need for any practices.
🌸Jai Guru Dev🌸
साप्ताहिक ज्ञानपत्र १७१
१७ सितम्बर , १९९८
आश्रम, बंगलौर, भारत
करते जाओ जब तक वह तुम्हारा स्वाभाव न बनजाये
सदाचार पालन किए जाओ जब तक वह तुम्हारा स्वाभाव न बन जाए। मित्रता , दया और ध्यान अभ्यास की तरह जारी रखो , जब तक यह न समझ जाओ की वे तो तुम्हारे स्वाभाव ही है।
कृत्य के रूप में किसी कार्य को करने में यह त्रुटि है की तुम फल की उम्मीद रखते हो। जब कार्य स्वभावतः किया जाता है, तुम फल की लालसा नहीं रखते, बस, सहजता से कार्य किए जाते हो।
स्वभावतः किया हुआ काम न तो थकान देता है और न ही कुंठित करता है। उदाहरण के लिए दन्त साफ़ करना, नहाना, इत्यादि दैनिक कार्यो को कृत्य ही नहीं समझा जाता है क्योकि वे तुम्हारे दैनिक जीवन से जुडी है।इन सबको तुम कर्तापन के बिना करते हो। जब सेवा तुम्हारा स्वाभाव बन जाता है, तब कार्य कर्तापन-रहित होते है।
प्रश्न: यह कब पता चलता है की दया , ध्यान और सेवा हमारा स्वाभाव है?
श्री श्री: जब तुम इनके बिना रह नहीं सकते। ग्यानी इसीलिए अपने अभ्यास जारी रखते है ताकि वे औरो के लिए उदाहरण बने, हालाँकि उनके लिए किसी भी अभ्यास की आवश्यकता नहीं।
🌸जय गुरुदेव🌸
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