*144. YOU ARE THE TENTH*
Ten people were going from one village to another. On the way they had to cross a river. After crossing they wanted to be sure all were there. Each one started counting but counted only nine. They were very distraught and began to cry for the loss of the tenth.
A wise man came along and asked them "Oh my dear friends, why are you crying?"
"We were ten but now we are only nine," they replied. The wise man saw they were ten, so he asked them to count.
Each counted nine but left out himself. Then the wise man made them stand and count, and he said to the last person, "You are the tenth!" And they all rejoiced for having regained the tenth.
The five senses and the four inner faculties (mind, intellect, memory, ego) all lament when they lose sight of the Self. Then the Master comes and shows you that You are the tenth! Count, but never stop until YOU find the tenth!
Feeling the ever-present Self inside makes everything truly joyful.
*Question:* What did Brahma think when he made this creation?
*Sri Sri:* He didn't think before doing. He didn't take anyone's suggestion -- I would have given Him a few!
11 मार्च, 1998
ऋषिकेश, भारत
*144. तुम दसवें हो*
दस व्यक्ति एक गाँव से दूसरे गाँव पैदल जा रहे थे । रास्ते में उन्हें एक नदी पार करनी थी । दूसरे तट पर पहुँचने पर वे निश्चित होना चाहते थे कि सभी सही- सलामत पहुँच गये हैं । प्रत्येक व्यक्ति केवल नौ को गिनता और अपने आप को छोड़ देता । वे बिल्कुल व्याकुल हो गये और दसवें के खोने के दु:ख में रोने लगे ।
एक ज्ञानी व्यक्ति वहाँ से गुज़र रहा था । उसने पूछा, "मेरे प्रिय मित्रों, आप लोग क्यों रो रहे हो ?"
"हम दस थे परन्तु अब हम केवल नौ हैं," उन्होंने उत्तर दिया ।
ज्ञानी व्यक्ति ने देखा कि वे दस थे तो उसने उन सब को खड़ा करके गिनने कहा । उसने आखिरी व्यक्ति को कहा, "तुम दसवें हो ।" दशम के मिल जाने पर सब ने खुशियाँ मनाई ।
हमारी पाँच इन्द्रियाँ और चार आन्तरिक शक्तियाँ (मन, बुद्धि, स्मृति और अहं) सभी विलाप करती हैं जब वे आत्मा से दूर हो जाती हैं । फिर गुरु आते हैं और तुम्हें दिखाते हैं कि तुम ही दशम हो !
गिनती करो, लेकिन तब तक न रुको जब तक दसवाँ न मिल जाये ।
शाश्वत सत्ता को अपने अन्तर्गत पा जाने पर सब-कुछ वास्तव में आनन्दमय हो जाता है ।
प्रश्न : ब्रह्मा ने क्या सोेचा जब उन्होंने यह सृष्टि बनाई ?
श्री श्री : संरचना के पहले उन्होंने सोचा नहीं, उन्होंने किसी की राय नहीं ली । मैं कुछ दे देता .... ! (हँसी)
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